मंगलवार, जनवरी 29, 2019

ग़ज़ल ... परिन्दे घर से निकले हैं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


परों में बांध कर हिम्मत, परिन्दे घर से निकले हैं।
करेंगे  पार  हर  पर्वत, परिन्दे घर से निकले हैं ।

नहीं है ख़ौफ़ मौसम का, न कोई डर हवाओं का
उड़ानों की लिए चाहत, परिन्दे घर से निकले हैं।

चहकना है इन्हें हर हाल, हों हालात कैसे भी
भले ही मन रहे आहत, परिन्दे घर से निकले हैं।

न कोई वास्ता नफ़रत, सियासत,शानोशौकत से
मुहब्बत की लिए दौलत, परिन्दे घर से निकले हैं।

सुबह से सांझ तक "वर्षा", रहेगी खोज तिनके की
मिले चाहे नहीं राहत ,परिन्दे घर से निकले हैं।
                  - डॉ. वर्षा सिंह


शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

ग़ज़ल ... उजाला लाइए - डॉ. वर्षा सिंह

Dr.Varsha Singh
ग़ज़ल

उजाला लाइए

बंद कमरों  में उजाला लाइए
भूख के बदले   निवाला लाइए

धूप की कोई ख़बर मिलती नहीं
ढ़़ूंढ़ कर ताजा़  रिसाला लाइए

ज़िन्दगी का स्वाद कड़वाहट भरा
हो सके तो कुछ निराला  लाइए

आपकी  बातें निराशा  से भरीं
आस्था  का भी हवाला  लाइए

बूंद ‘वर्षा ’ की  नदी बन जाएगी
हौसला  आषाढ़ वाला    लाइए

- डॉ. वर्षा सिंह   
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http://yuvapravartak.com/?p=8745


मंगलवार, जनवरी 22, 2019

ग़ज़ल .... ज़िन्दगी उलझी है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
ग़ज़ल
- डॉ. वर्षा सिंह

पैकेजों का जाल, ज़िन्दगी उलझी है
मत पूछो क्या हाल, ज़िन्दगी उलझी है

आज यहां हैं, होंगे कल हम और कहीं
बदल रहे हैं साल, ज़िन्दगी उलझी है

छीन लिया सुख-चैन कैरियर ने सारा
क़दम मिलाते ताल, ज़िन्दगी उलझी है

हालातों के लिए दोष देना किसको
वक़्त बदलता चाल, ज़िन्दगी उलझी है

सपनों के पत्ते बिखरे, सब रीत गया
चटक रही है डाल, ज़िन्दगी उलझी है

सोच, फ़िक्र बेकार, दाल में काला क्या!
काली पूरी दाल, ज़िन्दगी उलझी है

बोर, पम्प, बिजली पर पानी निर्भर है
सूख चुके हैं ताल, ज़िन्दगी उलझी है

जिस पर हमने नाम लिखा था चाहत का
गुमा कहीं रूमाल, ज़िन्दगी उलझी है

जिसके श्रम ने अन्न सदा उपजाया है
वही कृषक कंगाल, ज़िन्दगी उलझी है

“वर्षा” पार उतरने की ज़िद कर ली तो
फिर से बांधो पाल, ज़िन्दगी उलझी है

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http://yuvapravartak.com/?p=8590

सोमवार, जनवरी 07, 2019

मैंने ढूंढा तेरा चेहरा



एक ही नाम के होते हैं हज़ारों चेहरे
मैंने ढूंढा तेरा चेहरा हज़ार नामों में
       - डॉ. वर्षा सिंह

गुरुवार, जनवरी 03, 2019

किताबें .... डॉ. वर्षा सिंह



नया रंग जीवन में भरती क़िताबें 📗
कड़ी धूप में छांह बनती क़िताबें  📙
सफ़ह दर सफ़ह अक्षरों को सजाती,
दुनिया को सतरों से बुनती क़िताबें 📘
अजब रोशनी सी बिखरती हमेशा,
तिलस्मी झरोखों सी खुलती क़िताबें 📖
जब  भी  सताती  हैं  यादें पुरानी ,
नयी इक कहानी सी कहती क़िताबें 📕
"वर्षा" क़िताबों से है प्यार जिनको,
दिलों-जां से उनको लुभाती क़िताबें 📒
      📚- डॉ. वर्षा सिंह