गुरुवार, दिसंबर 26, 2019

ग़ज़ल ... मर्ज़ी क्या -डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh
समझौता मेरे ही ज़िम्मे, नहीं तुम्हारा कुछ भी क्या
माफ़ी मैं ही मांगूं आख़िर मेरी ऐसी ग़लती क्या

हुईं क़िताबें कम तो भारी सूचनाओं का बोझ बढ़ा
सारा बचपन हवा हो गया, बच्चे भूले मस्ती क्या

यादों का संसार तिलस्मी, यादों के साये लम्बे
यादें तो यादें होती हैं मीठी क्या और खट्टी क्या

माना जीवन भर की खुशियां नहीं तुम्हारे वश में हैं
लेकिन मिलने पर भी आख़िर दोगे न इक झप्पी क्या

एक से बढ़ कर एक तमाशा किया सियासतदानों ने
रहे सलामत कुर्सी चाहे रिश्तों की हो कुर्की क्या

मनमानी कर तुमने अपने नियम-क़ायदे गढ़ डाले
एक दफ़ा तो पूछा होता "वर्षा" तेरी मर्ज़ी क्या
-------------

मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 27 दिसम्बर 2019 में स्थान मिला है। युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏 मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ... http://yuvapravartak.com/?p=23459

मंगलवार, दिसंबर 24, 2019

"ग़ज़ल जब बात करती है"- डॉ. वर्षा सिंह

"ग़ज़ल जब बात करती है"- डॉ. वर्षा सिंह

          शिवना प्रकाशन की फेसबुक वाल पर यह सूचना है- "नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के स्टॉल पर वरिष्ठ कवयित्री डॉ. वर्षा सिंह का नया ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" उपलब्ध रहेगा। "
         मित्रों, दरअसल.. मेरा पांचवां ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था... तब के बाद मित्र अक्सर पूछते- आपका अगला संग्रह कब आ रहा है ? तमाम तरह की व्यस्तताओं के चलते मुस्कुरा कर टाल जाती थी मैं... लेकिन शिवना प्रकाशन को बहुत धन्यवाद दिल से... जिसकी बदौलत अब मेरे पास जवाब है - लीजिए यह रहा मेरा ताज़ा छठवां ग़ज़ल संग्रह ....

"ग़ज़ल जब बात करती है"- डॉ. वर्षा सिंह

       जी हां, मेरी इस ग़ज़लयात्रा में मुझे कभी धूप मिली तो कभी छांव। इस दफ़ा छांव की शीतलता का सुखद अहसास कराया है शिवना प्रकाशन ने। इस प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान की प्रकाशन की दुनिया में अपनी अलग ही पहचान है।

शिवना प्रकाशन की नई पुस्तकें 

           साहित्यमनीषी, कथाकार, उपन्यासकार, गज़लकार, व्यंग्यकार, सम्पादक ... या एक शब्द में यूं कहूं कि बहुप्रतिभाशाली भाई पंकज सुबीर और उनके बेहद जागरूक सहयोगी ग़ज़लकार अधिवक्ता शहरयार अमजद ख़ान सहित शिवना प्रकाशन टीम की मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने मेरी ग़ज़लों को संग्रह का रूप दिया।
             .... और आप सभी ब्लॉगर मित्रों के प्रति भी आभार जिन्होंने समय-समय पर अपनी टिप्पणियों के माध्यम से मुझे प्रोत्साहित किया।

सोमवार, दिसंबर 23, 2019

नागरिकता संशोधन कानून के परिप्रेक्ष्य में : ग़ज़ल ... झंझट-झगड़ा ठीक नहीं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

*ग़ज़ल*

*ठीक नहीं*
       - डॉ. वर्षा सिंह

हर मुद्दे पर झंझट - झगड़ा  ठीक  नहीं
बिना बात का लफड़ा-दफड़ा ठीक नहीं

मज़बूरी में  फटा  पहनना  चलता  है
फैशन में लटकाना चिथड़ा ठीक नहीं

फूल खिले हों, तरह-तरह की ख़ुशबू हो
अगर बाग़ है तो फिर उजड़ा ठीक नहीं

खाली-पीली आपस में तक़रार  ग़लत
हरदम जात-धरम का पचड़ा ठीक नहीं

"वर्षा" अपना है जग सारा, सब अपने
यूं  ही  रहना उखड़ा-उखड़ा ठीक नहीं

                -------------------
प्रिय मित्रों,
        मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 20 दिसम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

मंगलवार, दिसंबर 17, 2019

अगर इक चाय मिल जाए


ज़रा सोचिए, पौष माह की इस कड़कड़ाती हाड़ कंपाती सर्दी में एक गर्म चाय की प्याली उन भूखे जनों के लिए किसी अमृत पात्र से कम नहीं होती.... अचानक जे़हन में उभर आए इस शेर के रूप में मेरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत है....
-----------------
वो जिनके पेट खाली हैं
मयस्सर है नहीं कुछ भी,
अमृत सी उन्हें लगती
अगर इक चाय मिल जाए
- डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, दिसंबर 10, 2019

सलामत रहे इश्क़ ❤ ... डॉ. वर्षा सिंह

रही जो कहानी अधूरी तो क्या !
नहीं और कुछ भी ज़रूरी तो क्या ?
सलामत रहे इश्क़ वाला ज़ुनूं
गुज़र गर  गई  उम्र पूरी तो क्या !
       - डॉ. वर्षा सिंह

शनिवार, नवंबर 02, 2019

गुस्सा कहीं का उतारा कहीं - डॉ. वर्षा सिंह


कहना जहां था, कहा कुछ नहीं
गुस्सा कहीं का उतारा कहीं

होगी जहां दर्द की दास्तां
मिरी शायरी भी मिलेगी वहीं


शनिवार, अक्तूबर 26, 2019

ग़ज़ल ...✨ दीवाली ✨ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

🌹🏵✨दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ✨🏵🌹
दीपावली दिनांक 27.10.2019 पर विशेष

दीवाली
                 - डॉ. वर्षा सिंह

नई रोशनी बिखर रही है आज नई कंदीलों से।
फिर उमंग की थाल सजी है मधुर बताशों- खीलों से।

किसे चांद की आज प्रतीक्षा मावस की यह रात भली
निकल रही है ज्योति नहाकर दीप-किरण की झीलों से।

दीवाली वो बचपन वाली याद आज भी आती है
पकवानों की खुशबू आती चूल्हे चढ़े पतीलों से।

स्वागत में रत हैं फिर यादें, चाहत के दरवाज़े पर
सुखद कामना के संदेशे आते चलकर मीलों से।

आंगन चौक पूर कर गोरी, द्वार सजाकर तोरण से
रंगबिरंगी - उजली झालर, बांध रही है कीलों से।

कहना मुश्किल असली तारे, नभ पर हैं या धरती पर
हुआ परेशां मौसम "वर्षा" तर्कों और दलीलों से।

                      -----------------------


मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 27 अक्टूबर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=20897


Ghazal - Dr Varsha Singh

शनिवार, अक्तूबर 12, 2019

ग़ज़ल .... शरद पूर्णिमा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

*शरद पूर्णिमा दिनांक 13.10.2019 पर विशेष*

*ग़ज़ल*
                 *शरद पूर्णिमा*
                                - डॉ. वर्षा सिंह

क्या क़यामत ढा रही, है शरद की पूर्णिमा।
गीत उजले गा रही, है शरद की पूर्णिमा।

भेद करती है नहीं धनवान - निर्धन में ज़रा
पास सबके जा रही, है शरद की पूर्णिमा।

दूध की उजली कटोरी या बताशे की डली
याद मां की ला रही, है शरद की पूर्णिमा।

दस्तकें देने नयी फिर कार्तिक के द्वार पर
बन संवर कर आ रही, हैै शरद की पूर्णिमा।

खोलती किरणें कई गोपन प्रकृति के अनकहे
नभ- धरा पर छा रही, है शरद की पूर्णिमा।

यूं तो पूरे चांद वाली रात लगती है भली
आज बेहद भा रही, हैै शरद की पूर्णिमा।

हो रही "वर्षा" सुधा की, चांदनी के रूप में
मधु कलश छलका रही, है शरद की पूर्णिमा।
               ------------
        आज शरद पूर्णिमा के अवसर पर मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 13 अक्टूबर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=20089

ग़ज़ल ... शरद पूर्णिमा - डॉ. वर्षा सिंह


मंगलवार, अक्तूबर 08, 2019

ग़ज़ल .... दशहरा का दिन - डॉ. वर्षा सिंह

Happy Dussehra

            🚩🏵 🔴  शुभ दशहरा 🔴🏵 🚩
*विजयादशमी पर विशेष*
*ग़ज़ल*

*दशहरा का दिन*

                 - डॉ. वर्षा सिंह

यूं सत्य की असत्य पर विजय सदा बनी रहे।
दशहरा का दिन सभी से आज बस यही कहे।

बुराइयों का अंत हो, स्वच्छ सारा तंत्र हो
एक व्यक्ति भी यहां दमन कतई नहीं सहे।

सभी में राम रह रहे, यही तो जानना है,बस
जला दे रावणों को जो, अग्निधार वह बहे।

न हो सिया का अपहरण, न हों शिला में स्त्रियां
हरेक बेटी अब यहां भुजाओं में गगन गहे।

रहे न भ्रष्ट आचरण, रहे यूं सदविचार ही
'वर्षा' प्रार्थना का ये,   दीप इक सदा दहे।

               ------------

             🚩🏵 🔴  शुभ दशहरा 🔴🏵 🚩

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 08 अक्टूबर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=19882


बुधवार, अक्तूबर 02, 2019

ग़ज़ल ... राष्ट्रपिता गांधी हो जाना सबके बस की बात नहीं - डाॅ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 01 अक्टूबर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=19480

ग़ज़ल :

राष्ट्रपिता गांधी हो जाना सबके बस की बात नहीं
                         - डाॅ. वर्षा सिंह

सत्य अहिंसा को अपनाना सबके बस की बात नहीं।
राष्ट्रपिता गांधी हो जाना  सबके बस की बात नहीं।

आजादी का स्वप्न देखना,  देशभक्त हो कर रहना
बैरिस्टर का पद ठुकराना, सबके बस की बात नहीं।

एक लंगोटी,  एक शॉल में, गोलमेज  चर्चा करना
हुक्मरान से रुतबा पाना, सबके बस की  बात नहीं।

आजादी जिसकी नेमत हो,  वही आमजन बीच रहे
लोभ, मोह, सत्ता ठुकराना, सबके बस की बात नहीं।

आत्मशुद्धि के लिए निरंतर,  महाव्रती हो कर रहना
हंस कर सारे कष्ट उठाना, सबके बस की बात नहीं।

सच के साथ  प्रयोगों की ‘वर्षा’  में शुष्क बने रहना
ऐसी अद्भुत राह दिखाना, सबके बस की बात नहीं।

ग़ज़ल ... राष्ट्रपिता गांधी - डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, अक्तूबर 01, 2019

मेरे यानी डॉ. वर्षा सिंह के ग़ज़ल संग्रह

Dr. Varsha Singh

यूं तो पिछले अनेक वर्ष से मैं हिंदी गजल लिख रही हूं। अभी तक हिन्दी ग़ज़ल की आलोचना पर एक पुस्तक और मेरे 5 गजल संग्रह प्रकाशित भी हो चुके हैं किंतु आजीविका की व्यस्तता के चलते नये संग्रह के प्रकाशन में व्यवधान आया। लेकिन लेखन ज़ारी रहा। सोशल मीडिया पर भी सतत रूप से मैं अपनी गजलों देती रही हूं।

मेरे ग़ज़ल संग्रह  - सर्वहारा के लिए
                    वक़्त पढ़ रहा है
                    हम जहां पर हैं
                    सच तो ये है
                    दिल बंजारा

  आलोचना पुस्तक  - हिन्दी ग़ज़ल : दशा और दिशा

मेरी ग़ज़लों पर ख्यातनाम समीक्षकों ने समय-समय पर जो टिप्पणियां  कीं हैं उनमें से कुछ यहां दे रही हूं….
मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणियां ....
  जनपक्षधरता वर्षा सिंह की खास पहचान है । शायरा का अनुभवसंसार भी व्यापक है इसलिए इनकी ग़ज़लें सिर्फ आधी आबादी तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरा समाज है इनकी ग़ज़लों में, पूरी दुनिया और पूरा आसमान है इनकी ग़ज़लों में । - अनिल विभाकर, कवि एवं साहित्यकार, हिंदुस्तान 30 दिसंबर 2000  को प्रकाशित 

वर्षा सिंह हिंदी गजल विधा की एक चर्चित हस्ताक्षर है और इन दिनों काफी अच्छी हिंदी ग़ज़लें लिख ही नहीं रही बल्कि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छप भी रही हैं। वर्षा सिंह की प्रत्येक गजल आज की परिस्थिति को यथार्थ वादिता के साथ  प्रदर्शित करने में सक्षम है- नरेंद्र कुमार सिंह, समय सुरभि, अंक 17 

वर्षा सिंह समकालीन हिंदी गजल के क्षेत्र में तेजी से उभरा हुआ हस्ताक्षर हैं। उन्होंने वस्तु और शैली दोनों ही स्तरों पर गजल को समृद्ध बनाया है तथा दुष्यंत कुमार की परंपरा में नई ग़ज़ल भाषा इजाद करने वाली कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की है - ऋषभ देव शर्मा, गोलकोंडा दर्पण फरवरी 2001 

डॉ. वर्षा सिंह लगभग 30 वर्षों से गजलें कह रही हैं और कवि सम्मेलन व मुशायरे में बहुचर्चित नाम हैं। इनकी गजलों में रिश्तों की ऊष्मा और परिवार के बीच की भावात्मकता का मार्मिक चित्रण मिलता है । इन्होंने माता पिता बेटी बूढ़ी मां आदि संबंधों को लेकर उन्हें रदीफ़ों में ढाल कर अनेक लोकप्रिय ग़ज़लें कही हैंं - हरेराम 'समीप', समकालीन महिला ग़ज़लकार 2017


ग़ज़ल संग्रह... सर्वहारा के लिये - डॉ. वर्षा सिंह
ग़ज़ल संग्रह... वक़्त पढ़ रहा है - डॉ. वर्षा सिंह




ग़ज़ल संग्रह... हम जहां पर हैं - डॉ. वर्षा सिंह


ग़ज़ल संग्रह... सच तो ये है - डॉ. वर्षा सिंह


ग़ज़ल संग्रह... दिल बंजारा - डॉ. वर्षा सिंह

आलोचना... हिन्दी ग़ज़ल : दशा और दिशा


..... और अपने ग़ज़ल लेखन पर मेरा संक्षिप्त आत्मकथ्य.....

हिंदी पद्य साहित्य की एक अनन्यतम मनोहारी छवि वाली विधा बन कर उभरी इस हिंदी गजल की विधा को अपनाकर मुझे बेहद आत्म संतोष मिला और लगातार संघर्षरत जीवन जीते हुए चिंतन एवं संवेदनाओं के गहरे तालमेल से जन्मे अपने विचारों को मैंने हिंदी ग़ज़ल के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।-  वर्षा सिह ‘मैं और मेरी ग़ज़लें,’ “ वक्त पढ़ रहा है “ -1992

सोमवार, सितंबर 30, 2019

ग़ज़ल ... ग़ज़ल जब बात करती है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 30 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
विशेष बात यह है कि मेरी यह ग़ज़ल मेरे प्रकाशनाधीन आगामी गजल संग्रह की शीर्षक ग़ज़ल है। जी हां, मेरे प्रकाशनाधीन ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक है - "ग़ज़ल जब बात करती है"
      मित्रों, यदि आप चाहें तो मेरी इस ग़ज़ल को इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=19347

युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

ग़ज़ल

ग़ज़ल जब बात करती है
          - डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं
ग़मों की स्याह रातों में खुशी के दीप जलते हैं

सुलझते हैं कई मसले, मधुर संवाद करने से
भुलाकर दुश्मनी मिलने के फिर पैगाम मिलते हैं

जहां हो राम का मंदिर, वहीं अल्लाह का घर हो
यक़ीं मानो, तभी चैनो-अमन के फूल खिलते हैं

उठायी हो शपथ जिसने मनुजता को बचाने की
उसी के पांव मंज़िल की तरफ़ दिन-रात चलते हैं

समझना चाहिए यह सच, हमारे हर पड़ोसी को
जो टालो शांति से टकराव भी चुपचाप टलते हैं

मिटा कर जंगलों को, ताप धरती का बढ़ा डाला
ध्रुवों पर ग्लेशियर भी आज तेजी से पिघलते हैं

बुझेगी प्यास फिर कैसे, जो पानी न सहेजेंगे
 बिना 'वर्षा' कई जंगल मरुस्थल में बदलते हैं
         --------------

ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

समकालीन महिला ग़ज़लकार संकलन और मेरी ग़ज़लें - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

वरिष्ठ कवि एवं विद्वान सम्पादक हरेराम समीप द्वारा सम्पादित "समकालीन महिला ग़ज़लकार " संकलन में मेरे परिचय सहित मेरी ग़ज़लों के साथ ही बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की ग़ज़लों को भी सम्मिलित किया गया है।






Hareram Sameep 

http://www.aanch.org में विद्वान समीक्षक जयप्रकाश मिश्र द्वारा लिखी गई समीक्षा  "समकालीन महिला ग़ज़लकार : एक महत्वपूर्ण कृति" के प्रति जयप्रकाश मिश्र के प्रति हार्दिक आभार !!!


रविवार, सितंबर 22, 2019

ग़ज़ल... बेटी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=18423

ग़ज़ल

            बेटी
                 - डॉ. वर्षा सिंह

इक करिश्मा-सा हर इक बार दिखाती बेटी।
धूप  में छांह  का अहसास कराती  बेटी।

वक़्त के साथ में  चलने का हुनर आता है
वक़्त के हाथ से  इक लम्हा चुराती बेटी।

गर्म  रिश्तों  की नई शाॅल बुना करती  है
सर्द  यादों के  निशानात मिटाती  बेटी।

फूल, खुश्बू तो कभी बन के हवा, पानी-सी
इक  नई राह  जमाने में  बनाती बेटी।

रोशनी मां की यही  और पिता का सपना
हर क़दम  पर नई उम्मीद जगाती बेटी।

नाम सिमरन हो, वहीदा हो  या कि हो ‘वर्षा’
प्यार के नूर से  दुनिया को सजाती बेटी।

http://yuvapravartak.com/?p=19032     
#ग़ज़लवर्षा

ग़ज़ल... बेटी - डॉ. वर्षा सिंह


शुक्रवार, सितंबर 13, 2019

ग़ज़ल .... हिन्दी की व्यथा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌺🙏

          मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 13 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=18547


ग़ज़ल

हिन्दी की व्यथा 
                 - डॉ. वर्षा सिंह

स्वार्थ में डूबे हुए हैं हाशिए
जर्जरित रिश्ते कोई कैसे सिए

मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए 

पर्वतों के पास तक पहुंचे नहीं
घाटियों ने खूब दुखड़े रो लिए

किस क़दर अंग्रेजियत हावी हुई
आप हिन्दी की व्यथा मत पूछिए 

सर्पपालन का अगर है शौक तो
आस्तीनों में न अपने पालिए

आजकल "वर्षा" रदीफ़ों की जगह
 अतिक्रमित करने लगे हैं काफ़िए

http://yuvapravartak.com/?p=18547 
               ------------

ग़ज़ल... हिन्दी की व्यथा - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा

हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह


रविवार, सितंबर 08, 2019

ग़ज़ल... ओ मेरी नादान ज़िन्दगी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 08 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=18423

ग़ज़ल
         ओ मेरी नादान ज़िन्दगी !
                  - डॉ. वर्षा सिंह

अब तो कहना मान ज़िन्दगी
सुख की चादर तान ज़िन्दगी

ढेरों आंसू लिख पढ़ डाले
रच ले कुछ मुस्कान ज़िन्दगी

अपनी मंजिल आप ढूंढ ले
ओ मेरी नादान ज़िन्दगी

रुठा- रुठी छोड़ अरे अब
दो दिन की मेहमान ज़िन्दगी

साथ किसी के कौन गया कब
इस सच को पहचान ज़िन्दगी

सारे मौसम इसके अनुचर
समय बड़ा बलवान ज़िन्दगी

हंसकर तय करने ही होंगे
सांसो के सोपान ज़िन्दगी

आह न निकले तनिक कंठ से
शिव बनकर विषपान ज़िन्दगी

"वर्षा" माटी का तन इस पर
करना मत अभिमान ज़िन्दगी
         ---------------

#ग़ज़लवर्षा

http://yuvapravartak.com/?p=18423

गुरुवार, अगस्त 22, 2019

ग़ज़ल.... मूल्य जीवन के बदलते जा रहे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 अगस्त 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=17783

ग़ज़ल

मूल्य जीवन के बदलते जा रहे ....

                 - डॉ. वर्षा सिंह

वर्जनाओं से बिखरते जा रहे
दर्पणी सपने दरकते जा रहे

जो अप्रस्तुत है उसी की चाह में
रिक्त सारे पंख झड़ते जा रहे

प्यार का मधुबन न उग पाया यहां
कसमसाते छंद ढलते जा रहे

कष्ट की काई जमीं हर शब्द पर
अर्थ के प्रतिबिंब मिटते जा रहे

चुक रहे संदर्भ रिश्तों के सभी
हम स्वयं से आज कटते जा रहे

लीक के अभ्यस्त पांवों के तले
मुक्ति के अनुबंध घिसते जा रहे

बन न पाया मन कभी निर्वात जल
हम हिलोरों में हुमगते जा रहे

और कब तक अंधकूपी रात दिन
पूछते पल-छिन गुज़रते जा रहे

जागरण “वर्षा’’ ज़रूरी हो गया
मूल्य जीवन के बदलते जा रहे

           ------------

#ग़ज़लवर्षा


ग़ज़ल..... शेष नहीं वे क्षण - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस  को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 19 अगस्त 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=17702

ग़ज़ल

   शेष नहीं वे क्षण...
           - डॉ. वर्षा सिंह

सर्वनाम  रह  गये गुमी  हैं संज्ञाएं ।
शब्द बिंब ही अर्थों को अब बहकाएं ।

संदर्भों ने बांध दिया संबंधों को ,
निर्धारित कर दी हैं सब की सीमाएं ।

शेष नहीं वे क्षण जो जोड़ें तन मन को ,
भीगे उजियालों से माथा सहलाएं ।

तटस्थता का राग उन्हीं ने छेड़ा है ,
आदत जिनकी उलझें, सबको उलझाएं ।

कालजयी होने का जिनको दंभ यहां, अक्सर छूटीं उनके हाथों वल्गाएं ।

समझौते की चर्चा झेल न पाई है ,
निर्णय पर कायम रहने की विपदाएं ।

अंतरिक्ष में नीड़ भला कब बन पाए ,
आश्रय देती हैं भू पर ही शाखाएं ।

अवसरवादी सुविधा भोगी सांसों को,
सहनी ही पड़ती हैं ढेरों कुंठाएं ।

व्यथा विरत कवि नहीं कभी भी हो पाये,
“ मां निषाद” वाल्मीकि रचेंगे रचनाएं ।

कहते हैं आशाओं का आकाश वृहद, चुटकी भर मैंने भी भर ली आशाएं ।

पूरी की पूरी  तस्वीर  उकेरेंगी,
भले अधूरी “वर्षा” की हैं रेखाएं ।
          -------------

#ग़ज़लवर्षा

गुरुवार, अगस्त 15, 2019

🇮🇳 ❤ स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ❤ 🇮🇳 ... डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

   🌺 🙏 🇮🇳 स्वतंत्रता दिवस की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं 🇮🇳 🙏🌺

आज़ादी  के  गीत  हमेशा  गाएंगे ।
अपना प्यारा परचम हम लहराएंगे ।

संघर्षों के बाद मिली जो आज़ादी ,
उसका हम इतिहास सदा दोहरायेंगे ।

बलिदानों की गाथा को आदर्श बना,
नई राह पर  क़दम बढ़ाते  जाएंगे ।

चांद छू लिया, मंगल तक जा पहुंचेंगें,
अंतरिक्ष को  धरती  पर ले लाएंगे ।

एक देश है भारत, रंग हज़ारों हैं ,
रंग एकता का  "वर्षा"  दिखलाएंगे ।

         - डॉ. वर्षा सिंह


रविवार, अगस्त 04, 2019

शुभ मित्रता दिवस HAPPY FRIENDSHIP DAY dt. 04. 08.2019

Dr. Varsha Singh
           मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 24 जुलाई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=17135

*ग़ज़ल*

दोस्त वही सच्चा है ....

                 - डॉ. वर्षा सिह

भूली बिसरी याद जाग कर हलचल करती है दिल में ।
सूखा फूल मिला हो जैसे किसी पुराने नाविल में ।

एक हंसी दे जाता है और एक ख़ुशी ले जाता है,
फ़र्क यही होता है जीवनदाता में और क़ातिल में ।

होना क्या था और हुआ क्या, भेद न मन कर पाता है,
अर्थ बदल जाते हैं अक़्सर सपनों वाली झिलमिल में ।

यूं तो सूची बहुत बड़ी है, "लाइक" करने वालों की,
लेकिन दोस्त वही सच्चा है काम जो आये  मुश्किल में ।

"वर्षा" नफरत के बदले में नफरत ही हासिल होती,       छिपी हुई रहती है दुनिया नन्हीं सी इस्माइल में ।
                 ------------
#ग़ज़लवर्षा
ग़ज़ल- डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लवर्षा