सोमवार, नवंबर 27, 2017

एक ग़ज़ल दिल के नाम ....

आज बदली हुई सी सरगम है
सिर उठाने लगा हर इक ग़म है

पढ़ न पाओगे भाव चेहरे के
रोशनी भी यहां ज़रा कम है

दे रहा था जो वास्ता दिल का
हाथ में आज उसके परचम है

घाव जिसने दिया है तोहफे में
दे रहा शख़्स वो ही मरहम है

यूं तो ख़ामोश घटायें "वर्षा"
आंख भीगी, हवा हुई नम है

- डॉ वर्षा सिंह

एक ग़ज़ल चांद पर ....


Dr. Varsha Singh

रात के माथे टीका चांद
खीर सरीखा मीठा चांद
हंसी चांदनी धरती पर
आसमान में चहका चांद
महकी बगिया यादों की
लगता महका महका चांद
उजली चिट्ठी  चांदी- सी
नाम प्यार के लिखता चांद
"वर्षा" मांगे दुआ यही
मिले सभी को अपना चांद
- डॉ वर्षा सिंह

सोमवार, नवंबर 20, 2017

Me & My Mother

मेरी माताश्री श्रीमती डॉ. विद्यावती " मालविका "  हिन्दी साहित्य की विदुषी लेखिकाओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। " बौद्ध धर्म पर मध्ययुगीन हिन्दी संत साहित्य का प्रभाव " विषय में पीएच.डी उपाधि प्राप्त डॉ. विद्यावती " मालविका "  की लगभग 40 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

मेरी छः ग़ज़लें सामयिक सरस्वती में

प्रिय मित्रो, हिन्दी साहित्य जगत् की लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण पत्रिका ‘‘सामयिक सरस्वती’’ के अक्टूबर-दिसम्बर 2017 अंक में मेरी छः ग़ज़लें प्रकाशित हुई हैं।

शुक्रवार, नवंबर 10, 2017

Hello Everyone

सूर्य हुआ फिर उदित
प्रकृति हो गई मुदित
  
हो कब कैसे क्या - क्या
नहीं किसी को विदित
      .  🌞☀- डॉ. वर्षा सिंह

गुरुवार, नवंबर 02, 2017

तन्हाई

अंधेरों में बसी रहती
है तन्हाई ही तन्हाई
उजालों की कथाओं में
है परछाई ही परछाई
कहां जायें, कहें किससे
समझ में कुछ नहीं आता,
बड़ी मुश्किल हुई 'वर्षा'
नहीं कोई भी सुनवाई
       - डॉ. वर्षा सिंह