शनिवार, जुलाई 20, 2019

ग़ज़लों में बारिश और बारिश में ग़ज़लें - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singhdd 

आषाढ़ बीत गया और श्रावण आ गया.... जी हां यानी आ गए हैं बारिशों के दिन। बारिशों की रातें । सुबह बारिश, शाम बारिश, दोपहर बारिश यानी हर पहर बारिश। बारिश और बारिश । तो आइए आज हम बातें करें बारिश की और ग़ज़लों की यानी ग़ज़लों में बारिश और बारिश में गजलें.... कैफ़ भोपाली का यह ख़ूबसूरत शेर देखें ....

दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मिरी तन्हाई चुराने आई
- कैफ़ भोपाली

  उर्दू के ग़ज़लगो तहज़ीब हाफ़ी काग़ज़ की किश्ती से अपने वज़ूद की तुलना करते हुए कहते हैं....

मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
- तहज़ीब हाफ़ी

शायर मोहम्मद अल्वी कहते हैं कि बारिश धूप की गुज़ारिश पर ही आई है...

धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
     - मोहम्मद अल्वी

तो रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' कह उठते हैं....

आज फिर बारिश डराने आ गयी।
पर्वतों पर कहर ढाने आ गयी।

मेघ छाये-गगन काला हो गया,
Roop Chandra Shastri Mayank
चैन आँखों का चुराने आ गयी।।

लीलने को अब नहीं कुछ भी बचा
राग फिर किसको सुनाने आ गयी?

गाँव की वीरान कुटिया पूछती
क्यों यहाँ आफत मचाने आ गयी?

जिन्दगी के आशियाने ढह गये,
पत्थरों को अब सताने आ गयी।

अब नहीं भाता तुम्हारा “रूप” हमको,
क्यों यहाँ सूरत दिखाने आ गयी?

       -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

यथार्थवादी गजलों के रचनाकार दुष्यंत कुमार का बारिश के प्रति नजरिया कुछ और ही है । बारिश की गजलें और गजलों में बारिश दुष्यंत की अपनी शैली में कुछ इस तरह से बयां होती है...

देख, दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली
ये ख़तरनाक सचाई नहीं जाने वाली

कितना अच्छा है कि साँसों की हवा लगती है
आग अब उनसे बुझाई नहीं जाने वाली

एक तालाब-सी भर जाती है हर बारिश में
मैं समझता हूँ ये खाई नहीं जाने वाली
     - दुष्यंत कुमार

अख़्तर होशियारपुरी के ये अशआर यथार्थ के बेहद करीब हैं और उन गरीबों की बात करते हैं जिनके कच्चे मकान बारिश में अक्सर टूट फूट जाते हैं....

कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था

     - अख़्तर होशियारपुरी

दिगंबर नासवा भी कुछ इसी तरह के बेहद खूबसूरत अशआर कहते हैं जिसमें दुनिया का दुख दर्द और शायर का दर्द एकाकार होता दिखाई देता है....

खुल कर बहस तो ठीक है इल्जाम ना चले
जब तक न फैसला हो कोई नाम ना चले

Digambar Nasawa
तुम शाम के ही वक़्त जो आती हो इसलिए
आए कभी न रात तो ये शाम ना चले

बारिश के मौसमों से कभी खेलते नहीं
टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले
    - दिगम्बर नासवा

इश्क के रंग में डूबे हुए शेर कहने वाले शायर जमाल एहसानी कुछ इस तरह के अशआर कहते हैं बारिश में अपने महबूब को याद करते हुए....

उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या-क्या परेशानी हुई

     - जमाल एहसानी

 तो वहीं उर्दू के मशहूर शायर अंजुम सलीमी बारिश में  आग लगाने वाली ख़ूबसूरत बात को इन अल्फाजों में बयां करते हैं...

साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई

   - अंजुम सलीमी

कवयित्री डॉ. (सुश्री) शरद सिंह हिंदी और उर्दू में समान अधिकार रहते हुए बड़ी ख़ूबसूरती के साथ बारिश में भीगने की बात को कुछ इस तरह बयां करती हैं...

घर से निकलो, भीगें हम तुम बारिश में
Dr. (Miss) Sharad Singh
दो पल जी लें, झूमें हम तुम बारिश में

बह निकली निर्बाध यहां जलधारा भी
कुछ पल साथ बिता लें हम तुम बारिश में

    - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की इस ग़ज़ल के भी कुछ शेर देखें.....

भीगे मौसम में बारिश की लिख दे मनवा एक कहानी ।
एक कहानी ऐसी जिसमें न कोई राजा न कोई रानी।

ताल तलैया पोखर नदियां, पानी से भीगे हर आखर
राग-द्वेष और दुनियादारी, ये बातें सब आनी-जानी।

बादल हो कान्हा के जैसे  भीगे तो हर पोर भिगाए
 सूखे मौसम के बदले हो नन्हीं बूंदों की मनमानी।

          -  डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

 कुंवर बेचैन ने कुछ इस तरह अल्फाज़ दिए हैं अपने शेरों के माध्यम से....

शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई-सी तुम
ज़िन्दगी है धूप, तो मदमस्त पुरवाई-सी तुम

आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम

चाहे महफ़िल में रहूं चाहे अकेले में रहूं
गूंजती रहती हो मुझमें शोख शहनाई-सी तुम

लाओ वो तस्वीर जिसमें प्यार से बैठे हैं हम
मैं हूं कुछ सहमा हुआ-सा, और शरमाई-सी तुम

मैं अगर मोती नहीं बनता तो क्या बनता ‘कुँअर’
हो मेरे चारों तरफ सागर की गहराई-सी तुम

– कुँअर बेचैन

 बशीर बद्र अपने दिल को बारिशों में फूल सा कहते हुए अपनी बात कुछ इस तरह बयां करते हैं....

मैं कहता हूँ वो अच्छा बहुत है,
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है।

खुदा इस शहर को महफूज रख़े,
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है।

मैं तुझसे रोज मिलना चाहता हूँ,
मगर इस राह में खतरा बहुत है।

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा,
ये बच्चा रात में रोता बहुत है।

 अमित अहद ने बारिश के काफिए को लेकर बड़े ख़ूबसूरत शेर कहे हैं....

जब भी बरसी अज़ाब की बारिश
रास आयी शराब की बारिश

मैंने पूछा कि प्यार है मुझसे?
उसने कर दी गुलाब की बारिश

मैंने इक जाम और माँगा था
उसने कर दी हिसाब की बारिश

देर तक साथ भीगे हम उसके
हमने यूँ कामयाब की बारिश

प्यार से रोक दी ‘अहद’ मैंने
आज उसके इताब की बारिश

       - अमित अहद
.... और अब आज की चर्चा के अंत में वर्षा यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ वर्षा सिंह  की यह ग़ज़ल जो बारिशों के नाम है, देखें....

आए बारिशों के दिन।
बहकती ख़्वाहिशों के दिन।

भीगा है धरा का तन
गए अब गर्दिशों के दिन।

नदी चंचल, हवा बेसुध
नहीं अब बंदिशों के दिन।

लता झाड़ी गले मिलती, 
भुला कर रंजिशों के दिन।

हुई "वर्षा," हुए पूरे
सुलह की कोशिशों के दिन।
- डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh # Ghazal Yatra

बुधवार, जुलाई 10, 2019

आए बारिशों के दिन... ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह


       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 10 जुलाई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=16573

बारिशों के दिन
                 - डॉ. वर्षा सिंह

आए बारिशों के दिन।
बहकती ख़्वाहिशों के दिन।

भीगा है धरा का तन
गए अब गर्दिशों के दिन।

नदी चंचल, हवा बेसुध
नहीं अब बंदिशों के दिन।

लता झाड़ी गले मिलती,
भुला कर रंजिशों के दिन।

हुई "वर्षा," हुए पूरे
सुलह की कोशिशों के दिन।
       -----------------

#ग़ज़लवर्षा

आए बारिशों के दिन... ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा

रविवार, जुलाई 07, 2019

पुस्तक समीक्षा... फनकारी सा कुछ तो है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

      आज 'राजस्थान पत्रिका' के रविवारीय (सभी संस्करण) में मेरे यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा प्रकाशित हुई है। पुस्तक है देश के ख्यातिलब्ध शायर डॉ. महेंद्र अग्रवाल का ग़ज़ल संग्रह 'फनकारी सा कुछ तो है'।...तो, आप भी पढ़िये यह समीक्षा 🌹
      हार्दिक आभार 'राजस्थान पत्रिका' 🙏
दिनांक 07.07.2019

ग़ज़ल संग्रह 'फनकारी सा कुछ तो है' की समीक्षा - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा
बड़ा है इन ग़ज़लों का कैनवास
               - डॉ. वर्षा सिंह
            ग़ज़ल लेखन ठीक वैसी ही कला है जैसे कोई संगतराश कठोर चट्टान को छेनी से तराश कर किसी कलात्मक प्रतिमा में बदल दे। प्रतिमा में नवरस उंडेले जा सकते हैं, ग़ज़ल में भी। ग़ज़ल एक साथ कई रसों का बोध करा सकती है।  हर कला की भांति ग़ज़ल में भी छन्दानुशासन होता है। जिसका निर्वाह करना ग़ज़ल की पहली शर्त होती है। यह रस, लय, छंद तथा गहन जीवनानुभव से मिल कर बनती है।

बेशक़ ग़ज़ल अरबी, फारसी से उर्दू में होती हुई हिन्दी तक पहुंची, किन्तु अब वह हिन्दी की एक अभिन्न विधा बन चुकी है। हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने ग़ज़ल को समृद्ध किया है। डॉ. महेन्द्र अग्रवाल भी ग़ज़ल की गरिमा के साथ कोई समझौता पसंद नहीं करते हैं।

आम जीवन की बेबाकी से जिक्र करना और इसकी विसंगतियों की सारी परतें खोल देना आान नहीं होता। ग़ज़ल की फनकारी में माहिर महेन्द्र अग्रवाल आम जन जीवन की परेशानियों को बखूबी समझते हैं और उन्हें अपनी ग़ज़ल में जगह भी देते हैं। उनकी ग़ज़ल का कैनवॉस काफी बड़ा है, जिसमें वे ज़िन्दगी के उन पलों को भी चित्रांकित कर देते हैं जो ग़ज़ल में यदाकदा ही जगह पाते हैं। उनको भली-भांति से पता है कि उन्हें अपनी भावनाओं को किन शब्दों में और किन बिम्बों के माध्यम से प्रकट करना है और यही बिम्ब विधान पाठक के मन को छूते हैं और आत्मा को झकझोरते हैं। इस ग़ज़ल संग्रह में संग्रहीत ग़ज़लों में चिंतन और विचारों को सरल और स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया गया है वह पाठकों के लिए सहज बोधगम्य है। इनमें विभिन्न भाव संकेत और बिम्ब हैं जिनसे इनके कहन का सौन्दर्य और लयात्मकता देर तक मन-मस्तिष्क में तैरती रहती है।
                          ---------------
Please see the following link


http://epaper.patrika.com/c/41139437

डॉ. महेन्द्र अग्रवाल

फनकारी सा कुछ तो है - ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, जुलाई 02, 2019

ग़ज़ल ... प्यार का पहला पन्ना - डॉ. वर्षा सिंह


       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 02 जुलाई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=16382

प्यार का पहला पन्ना
                 - डॉ. वर्षा सिंह

यूं तो इंसां जाने कितने महाग्रंथ पढ़ जाता है।
प्यार का पहला पन्ना लेकिन, भूल न कोई पाता है।

बेहद मुश्किल सा सवाल ये, उत्तर कौन बतायेगा !
अनजाना-सा चेहरा कोई  आखिर क्यों  मन भाता है।

जिसकी आहट तक ने नाता तोड़ लिया दरवाज़े से,
अकसर हर इक सपना अपने साथ उसी को लाता है।

दीवाना कहता है कोई, कोई मजनूं कहता है,
बिना बहर की ग़ज़ल अटपटी मन ही मन जो गाता है।

कभी कभी इक लम्हा जैसे सदियों में ढल जाता है,
प्यार का ढाई आखर "वर्षा" बार-बार दोहराता है।
                -------------―

#ग़ज़लवर्षा

प्यार का पहला पन्ना - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा