ग़ज़ल
है ज़रूरी सावधानी
- डॉ. वर्षा सिंह
बेबसी में ज़िन्दगानी
बोतलों में बंद पानी
नीर के स्त्रोतों से कब तक
और होगी छेड़खानी
कल धरा का रूप क्या हो !
दिख रहा जो आज धानी
गर नहीं दुनिया रही तो
कौन राजा, कौन रानी !
राजनीतिक द्यूत क्रीड़ा
दांव पर खेती -किसानी
वन कटे तो नित बदलती
मौसमों की राजधानी
लौट आया है कोरोना
है ज़रूरी सावधानी
रात भर सोती नहीं मां
हो रही बेटी सयानी
क्या किया, सोचो कभी तो
गुम कुंआ, नदिया सुखानी
काटना होगा जो बोया
रीत यह तो है पुरानी
देश के जो काम आए
सार्थक है वो जवानी
क्या कहें, पूरब से पश्चिम
छा गई है बेईमानी
छांछ-मक्खन बांट देगी
वक़्त की चलती मथानी
बुझ रही संवेदना की
ज्योति होगी अब जगानी
रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी
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गर नहीं दुनिया रही तो कौन राजा, कौन रानी। वाह, क्या बात कही है आपने! और हाँ, मेरा भी यही मानना है वर्षा जी कि संवेदना की बुझती ज्योति को जगाना होगा। आज की हमारी अधिकांश समस्याएं संवेदनहीनता की ही उपज हैं, इसीलिए संवेदनशीलता ही उनका समाधान है। गिने-चुने लफ़्ज़ों से एक-एक शेर आपने इस ग़ज़ल के लिए कुछ इस तरह घड़ा है जैसे किसी कुशल शिल्पी ने छेनी-हथौड़ी से पत्थरों को मूरत में ढाला हो।
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जवाब देंहटाएंबुझ रही संवेदना की
ज्योति होगी अब जगानी
रह न जाये याद बन कर
बूंद वर्षा की कहानी ।।...सार्थक और संदेशपूर्ण रचना ।
बुझ रही संवेदना की
जवाब देंहटाएंज्योति होगी अब जगानी
रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी...
बेहतरीन गजल, एक संदेश देती हुई। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया डा. वर्षा जी।
जवाब देंहटाएंबेबसी में ज़िन्दगानी
बोतलों में बंद पानी
नीर के स्त्रोतों से कब तक
और होगी छेड़खानी
कल धरा का रूप क्या हो !
दिख रहा जो आज धानी
गर नहीं दुनिया रही तो
कौन राजा, कौन रानी !
राजनीतिक द्यूत क्रीड़ा
दांव पर खेती -किसानी
वन कटे तो नित बदलती
मौसमों की राजधानी
लौट आया है कोरोना
है ज़रूरी सावधानी
रात भर सोती नहीं मां
हो रही बेटी सयानी
क्या किया, सोचो कभी तो
गुम कुंआ, नदिया सुखानी
काटना होगा जो बोया
रीत यह तो है पुरानी
देश के जो काम आए
सार्थक है वो जवानी
क्या कहें, पूरब से पश्चिम
छा गई है बेईमानी
छांछ-मक्खन बांट देगी
वक़्त की चलती मथानी
बुझ रही संवेदना की
ज्योति होगी अब जगानी
रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी
यही है उत्तर दुष्यंत ग़ज़ल का तेवर जिसमें पर्यावरण चेतना भी है राजनीतिक कटाक्ष भी सामाजिक चिंताएं माँ बाप का बेटी के प्रति आशंकित मन।
veerujan.blogspot.com
बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर.....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंMadam ji Please visit www.hindi-kavita.in
नमन और श्रद्धांजली।
जवाब देंहटाएंलौट आओ दोस्त
जवाब देंहटाएंहुई सूनी दिल की महफ़िलें,
नज़्म है उदास
थमे ग़ज़लों के सिलसिले,
अंतस में घोर सन्नाटे हैं।
सजल नैनों में ज्वार - भाटे हैं
बिछड़े जो इस तरह गए
ना जाने किस राह चले?
कौन देगा शरद को
स्नेह की थपकियाँ
किसके गले लग बहन की।
थम पाएंगी सिसकियां
किस बस्ती जा किया बसेरा
हुए क्यों इतने फासले!!
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जवाब देंहटाएंरह न जाये याद बन कर
जवाब देंहटाएंबूंद-"वर्षा" की कहानी
स्मृति शेष वर्षा जी ने ये पंक्तियाँ लिखते सोचा ना था कि ये उनके जीवन का अंतिम सत्य बन जायेगी। नमन !नमन!!नमन!!!आप हमेशा याद आयेंगी 🙏🙏😔😔😪😪😔😔😪😪
यादों में रहेगी हमेशा आपकी कहानी ।
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यों कर आपने अंतिम शेर ऐसा लिखा था ।
🙏🙏🙏🙏🙏
कुछ यादें
जवाब देंहटाएंरह न जाये याद बन कर
जवाब देंहटाएंबूंद-"वर्षा" की कहानी
सचमें काश ये पंक्तियाँ न लिखी होती...।
You have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.
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