मंगलवार, जनवरी 09, 2018

गहरा पानी है

गहरा पानी है

आज न जाने दिल ने मेरे, कैसी ठानी है !
नाव उतारी वहां, जहां पर गहरा पानी है

वक़्त नया है, सदी नयी है, फ़र्क नहीं पड़ता
आग का दरिया, डूब के जाना, रीत पुरानी है

हमें मांगना और छीनना,  नहीं गंवारा है
इस दुनिया से अपनी दुनिया हमें चुरानी है

जिसने भी अंगारे छूये, उसका हाथ जला
इसकी, उसकी, सबकी "वर्षा", एक कहानी है

   - डॉ. वर्षा सिंह

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