Dr. Varsha Singh |
रेशमी फूल हवा भी ताज़ा
ख़त मेरे नाम क्यों नहीं आया
झील परछाइयों से लबालब है
उस तरफ है शज़र, इधर छाया
दौड़ती भागती हुई दुनिया
इस सड़क को कहीं नहीं जाना
सच तो यह है कि एक ख़ामोशी
कह रही आज शोर की गाथा
धुपधुपाती है बत्ती सी
सांस का देह से यही नाता
उम्र मेरी तमाम भीग गई
चूम कर वो गया मेरा माथा
धूप- "वर्षा" का ये अजब मौसम
बर्फ सी रात, दिन हुआ पारा
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार 🙏
हटाएंश्वेता जी, आपने मेरी ग़ज़ल को अपने समवेत ब्लॉग में शामिल कर मेरा उत्साहवर्धन किया है, पुनः हार्दिक आभार 🙏
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सुशील जी 🙏
हटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत शेर ...
जवाब देंहटाएंगहराई लिए नया अन्दाज़ लिए ...
आभार आपका दिल से 🙏
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