Dr. Varsha Singh |
पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप लिखी मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 16.02.2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
कृपया पत्रिका में मेरी ग़ज़ल पढ़ने हेतु निम्नलिखित Link पर जायें....
ये सोच के दिल घबराता है
- डॉ. वर्षा सिंह
कैसी आतंकी चली हवा, ये सोच के दिल घबराता है।घर में ही ख़ूनी खेल हुआ, ये सोच के दिल घबराता है।
मां से मिलने आया बेटा, लेकिन शहीद के चोले में,
ख़ामोश तिरंगे में लिपटा, ये सोच के दिल घबराता है।
दुश्मन ने कैसी चाल चली, विश्वास हुआ चिथड़ा- चिथड़ा,
मानव ने बम बन घात किया, ये सोच के दिल घबराता है।
है छिपा मुखौटे में चेहरा, पीछे से जिसने वार किया,
इक घाव लगाया है गहरा, ये सोच के दिल घबराता है।
हम शांति पुजारी हैं अनन्य, सद्भाव हमारी पूंजी है,
होती क्यों नफ़रत की "वर्षा", ये सोच के दिल घबराता है।
जय मां हाटेशवरी.......
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/02/2019 को......
[पांच लिंकों का आनंद] ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सुंदर अल्फ़ाज़। ज़ज्बातों की ' वर्षा ' नयनों में नमी बनकर उतरी है।
जवाब देंहटाएंदुश्मन ने कैसी चाल चली, विश्वास हुआ चिथड़ा- चिथड़ा,
जवाब देंहटाएंमानव ने बम बन घात किया, ये सोच के दिल घबराता है।
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना...