Dr. Varsha Singh |
मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 फरवरी 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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यह सिलसिला हरदम रहे
- डॉ. वर्षा सिंह
काश, मंज़र आज जैसा उम्र भर कायम रहे।
तुम कहो और मैं लिखूं, यह सिलसिला हरदम रहे।
तुम कहो और मैं लिखूं, यह सिलसिला हरदम रहे।
छल-कपट से हो न नाता, स्वार्थ की बातें न हों,
घड़कनों में प्यार की, बजती सदा सरगम रहे।
घड़कनों में प्यार की, बजती सदा सरगम रहे।
ज़िन्दगी है चार दिन की, कल पे कुछ मत छोड़िये,
आज दिल की बात कहने में न कुछ भी कम रहे।
आज दिल की बात कहने में न कुछ भी कम रहे।
आपसी विश्वास से रोशन रहे हर एक पल,
दिन उजालों से भरा हो, रात में पूनम रहे।
दिन उजालों से भरा हो, रात में पूनम रहे।
आंधियां आयें, चले लू, शीत-"वर्षा" कुछ भी हो,
दरमियां मेरे - तुम्हारे, इश्क़ का मौसम रहे।
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दरमियां मेरे - तुम्हारे, इश्क़ का मौसम रहे।
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