Dr. Varsha Singh |
मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 13 अप्रैल 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में मेरी ग़ज़ल इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=13441
ये जो एकतरफ़ा इश्क़ है,
मुझे मुझसे ही है चुरा रहा।
मेरी बेखुदी को बढ़ा रहा,
मुझे चांदनी में जला रहा।
मेरी सुबह भी परेशान सी,
मुझे शाम लगती उदास सी,
मुझे बेवज़ह ये भरम हुआ,
मुझे दूर से वो बुला रहा ।
कभी ख़्वाब में भी जो था नहीं ,
वो ख़्याल बन के है आ रहा,
मुझे क्या हुआ कि मैं चल रही
मुझे रास्ता वो दिखा रहा।
न मैं चुप रहूं, न मैं कह सकूं,
ये अजीब सा मेरा हाल है,
जो नज़र भी मुझको न आ रहा,
मेरी रूह में वो समा रहा।
मेरा नाम "वर्षा" तो है मगर,
मेरी ज़िन्दगी में थी शुष्कता,
मुझे इश्क़ ने जो भिगो दिया,
मुझे अपना भी न पता रहा।
- डॉ. वर्षा सिंह
ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा |
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