ज़रा सोचिए, पौष माह की इस कड़कड़ाती हाड़ कंपाती सर्दी में एक गर्म चाय की प्याली उन भूखे जनों के लिए किसी अमृत पात्र से कम नहीं होती.... अचानक जे़हन में उभर आए इस शेर के रूप में मेरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत है....
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वो जिनके पेट खाली हैं
मयस्सर है नहीं कुछ भी,
अमृत सी उन्हें लगती
अगर इक चाय मिल जाए
- डॉ. वर्षा सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-12-2019) को "इक चाय मिल जाए" चर्चा - 3554 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !बहुत ख़ूब आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
वर्षा जी ! जनता ने एक चाय वाला प्रधानमंत्री बना दिया फिर क्यों आपको चाय नसीब नहीं हो रही है?
जवाब देंहटाएंबहुत ना-इंसाफ़ी है.
सच, बड़ी राहत सर्दी में चाय से
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!