गुरुवार, मार्च 25, 2021

फाग गाता है "ईसुरी" जंगल | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

     फाग गाता है "ईसुरी" जंगल
               - डॉ. वर्षा सिंह

है दरख़्तों  की शायरी जंगल
धूप - छाया की डायरी जंगल

बस्तियों से निकल के तो देखो
ज़िन्दगी की है ताज़गी जंगल

गूंजती  हैं  ये वादियां जिससे
पर्वतों  की  है  बांसुरी  जंगल

कर रहा  है अनेक  कल्पों से
सृष्टिकर्ता की आरती जंगल

जीव हो या कि पौध हो कोई
हंस के करता है दोस्ती जंगल

याद  करता  है  गर्व से अक्सर
''राम-सीता'' की जीवनी जंगल 

जब  बहारें "रजऊ"-सी सजती हैं
फाग  गाता है  *"ईसुरी" जंगल

दिल से  पूछो  ज़रा  परिंदों  के
खुद फ़रिश्ता है, ख़ुद परी जंगल

नाम  ‘वर्षा’  बदल भी जाए तो
यूं  न  बदलेगा ये  कभी जंगल

            --------------

* [ भारतेन्दु युग के लोककवि ईसुरी (1831-1909 ई.) आज भी बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। ईसुरी की रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का वास्तविक चित्रण मिलता है। ग्राम्य संस्कृति का पूरा इतिहास केवल ईसुरी की फागों में मिलता है। उनकी फागों में प्रेम, श्रृंगार, करुणा, सहानुभूति, हृदय की कसक एवं मार्मिक अनुभूतियों का सजीव चित्रण है। उनकी ख्‍याति फाग के रूप में लिखी गई उन रचनाओं के लिए विशेष रूप से है, जो काल्‍पनिक प्रेमिका रजऊ को संबोधित करके लिखी गई हैं। ]

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ग़ज़ल तो अद्वितीय है ही वर्षा जी, साथ ही उसके साथ आपने लोककवि ईसुरी तथा उनकी फागों के विषय में जो ज्ञान साझा किया है, वह भी मुझ जैसे बुंदेलखंड की लोक-संस्कृति से अपरिचित व्यक्तियों के लिए अत्यंत मूल्यवान है । दूसरे शेर के पहले मिसरे में ऐसा लगता है जैसे मात्राओं का हिसाब ठीक से नहीं बैठ रहा । बहरहाल, यह ग़ज़ल ऐसी है जिसे बार-बार पढ़ने को जी चाहता है । आभारी हूँ आपका जो आपने मुझे इसके आस्वादन का अवासर दिया ।

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    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय माथुर जी 🙏
      मुझे नहीं लगता कि दूसरे शेर के पहले मिसरे में वज़न या बहर के हिसाब से कोई गड़बड़ी है। बहरहाल आपने मेरी ग़ज़ल को पसन्द किया य। मेरी ख़ुशनसीबी है।
      पुनः आभार सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  2. दिल से पूछो ज़रा परिंदों के
    खुद फ़रिश्ता है, ख़ुद परी जंगल
    वाह !! बहुत खूब ।।

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    1. शुक्रिया तहेदिल से प्रिय मीना भारद्वाज जी 🙏

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  3. बहुत ही खूबसूरती से हर शेर को सजाया है आपने,शानदार गजल ।

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  4. लाजवाब है हर शेर ...
    आंचलिक शब्दों को पिरो कर इसकी खूबसूरती और बढ़ा दी है आपने ...

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    1. आदरणीय नासवा जी, आपकी इस टिप्पणी ने मेरी ग़ज़ल को जो सार्थकता प्रदान की है. उसके लिए हार्दिक धन्यवाद आपको 🙏

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