Dr. Varsha Singh |
नाम तुम्हारा
- डॉ. वर्षा सिंह
सुनते हैं सदी पहले कुछ और नज़ारा था
इस रेत के दरिया में पानी था, शिकारा था
रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर
जो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था
मुद्दत से मुझे कोई, बेफ़िक्र न मिल पाया
हर शख़्स की आंखों में चिंता का पिटारा था
दंगों ने, फ़सादों ने बस्ती ही जला डाली
जिस ओर नज़र डाली, उस ओर शरारा था
हैरान न अब होना, आंधी जो चली आई
ख़ामोश उदासी ने हलचल को पुकारा था
ज़िद पार उतरने की, हो पाई नहीं पूरी
डूबी थी जहां किश्ती, कुछ दूर किनारा था
थक-हार के लोगों ने, चर्चा ही बदल डाली
समझा न कोई कुछ भी, क्या ख़ूब इशारा था
जिस रात की आंखों में, मैं झांक नहीं पाई
उस रात की आंखों का, हर ख़्वाब सितारा था
मर-मर के बिताई है "वर्षा" ने उमर सारी
कहने को हर एक लम्हा, जी-जी के गुज़ारा था
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
प्रिय मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल का चयन चर्चा मंच हेतु करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी 🙏
हटाएंरेत के दरिया में ... वाह बहुत सुंदर । और हथेली पर बेखौफ नाम लिखना तो गज़ब ही शेर है । पूरी ग़ज़ल शानदार ।
जवाब देंहटाएंआपने सराहा तो मेरी ग़ज़ल सार्थक हो गई...
हटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीया 🙏
बेहतरीन अशआरों से सजी-सँवरी उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंयह मेरी ग़ज़ल के लिए बहुत बड़ा सम्मान है कि वह आपको पसन्द आई.और आपने उसे उम्दा कहा... हार्दिक आभार आपका आदरणीय 🙏
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जवाब देंहटाएंसुनते हैं सदी पहले कुछ और नज़ारा था
इस रेत के दरिया में पानी था, शिकारा था
रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर
जो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था..बहुत उम्दा शेर..नायब गजल..
बहुत शुक्रिया प्रिय जिज्ञासा जी 🙏
हटाएंबहुत ही उम्दा गजल, वर्षा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद प्रिय ज्योति जी 🙏
हटाएंसुनते हैं सदी पहले कुछ और नज़ारा था
जवाब देंहटाएंइस रेत के दरिया में पानी था, शिकारा था
रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर
जो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था
वाह और सिर्फ वाह वर्षा जी | आपकी सधी कलम और उससे निसृत इतना सुंदर और भावपूर्ण सृजन मन को मोह गया | ढेरों शुभकामनाएं और स्नेह आपके लिए |
आपकी इस आत्मीयता से भरपूर टिप्पणी ने मुझे नई ऊर्जा दी है। बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय रेणु जी 🙏
हटाएंइस ग़ज़ल को तो किसी महफ़िल में सुनाने के लिए याद करना पड़ेगा वर्षा जी । एक-एक शेर जैसे कोई अनमोल मोती है और समूची ग़ज़ल जैसे कोई नौलखा हार ।
जवाब देंहटाएंयह मेरी ख़ुशनसीबी है कि आप जैसे विद्वतजन को मेरी यह ग़ज़ल पसंद आई।
हटाएंहार्दिक आभार आपका आदरणीय माथुर जी 🙏
रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर
जवाब देंहटाएंजो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था
वाह !!बहुत खूब वर्षा जी,सादर नमन
हार्दिक धन्यवाद प्रिय कामिनी जी 🙏
हटाएंक्या बात है ! अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीय गगन शर्मा जी
हटाएंलाजवाब गजल।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद यशवंत माथुर जी 🙏
हटाएंवाह!बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रिय अनीता सैनी जी 🙏
हटाएंथक-हार के लोगों ने, चर्चा ही बदल डाली
जवाब देंहटाएंसमझा न कोई कुछ भी, क्या ख़ूब इशारा था
वाह!!! लाजवाब !!!
बेहतरीन ग़ज़ल 🌹🙏🌹
बहुत धन्यवाद प्रिय बहन डॉ.(सुश्री) शरद सिंह 🙏
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