बुधवार, दिसंबर 23, 2020

कुछ जतन कीजिए | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh
 

  

कुछ जतन कीजिए

-  डॉ. वर्षा सिंह


पीपलों, बरगदों, आंवलों के लिए 

हम दुआएं करें जंगलों के लिए 


आग यूं ही धधकती रही हर तरफ 

ठौर होगा कहां बुलबुलों के लिए 


द्वार पर पांव रखने गई लड़कियां 

चुप रहें, शर्त थी पायलों के लिए 


काग़ज़ी आंकड़ों से भरी है सदी 

जोड़-बाकी महज हलचलों के लिए 


आज का दौर कल से ज़ुदा किस तरह 

आज भी रोशनी कुछ पलों के लिए 


आंख में जंग खाए सपन चुप रहे 

आंसुओं की तपन काजलों के लिए 


घुल रहा है हवा में ज़हर ही ज़हर

कुछ जतन कीजिए कोंपलों के लिए 


साथ "वर्षा" निभाती रहेगी सदा 

आस्था शेष है बादलों के लिए


------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

18 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल ! अभिनंदन वर्षा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आंख में जंग खाए सपन चुप रहे
    आंसुओं की तपन काजलों के लिए

    घुल रहा है हवा में ज़हर ही ज़हर
    कुछ जतन कीजिए कोंपलों के लिए

    शानदार ग़ज़ल !!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 🙏

      हटाएं
  3. अत्यंत आभार आपके प्रति प्रिय मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. ख़ूबसूरत रचना मुग्ध करती हुई - - आज का दौर कल से ज़ुदा किस तरह

    आज भी रोशनी कुछ पलों के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर कोमल भावों से युक्त रचना

    जवाब देंहटाएं