Dr. Varsha Singh |
कुछ जतन कीजिए
- डॉ. वर्षा सिंह
पीपलों, बरगदों, आंवलों के लिए
हम दुआएं करें जंगलों के लिए
आग यूं ही धधकती रही हर तरफ
ठौर होगा कहां बुलबुलों के लिए
द्वार पर पांव रखने गई लड़कियां
चुप रहें, शर्त थी पायलों के लिए
काग़ज़ी आंकड़ों से भरी है सदी
जोड़-बाकी महज हलचलों के लिए
आज का दौर कल से ज़ुदा किस तरह
आज भी रोशनी कुछ पलों के लिए
आंख में जंग खाए सपन चुप रहे
आंसुओं की तपन काजलों के लिए
घुल रहा है हवा में ज़हर ही ज़हर
कुछ जतन कीजिए कोंपलों के लिए
साथ "वर्षा" निभाती रहेगी सदा
आस्था शेष है बादलों के लिए
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
बेहतरीन ग़ज़ल ! अभिनंदन वर्षा जी ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीय माथुर जी 🙏
हटाएंआंख में जंग खाए सपन चुप रहे
जवाब देंहटाएंआंसुओं की तपन काजलों के लिए
घुल रहा है हवा में ज़हर ही ज़हर
कुछ जतन कीजिए कोंपलों के लिए
शानदार ग़ज़ल !!!
बहुत शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 🙏
हटाएंअत्यंत आभार आपके प्रति प्रिय मीना जी 🙏
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत रचना मुग्ध करती हुई - - आज का दौर कल से ज़ुदा किस तरह
जवाब देंहटाएंआज भी रोशनी कुछ पलों के लिए
हार्दिक धन्यवाद सान्याल जी 🙏
हटाएंखूबसूरत गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ज्योति जी 🙏
हटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सधु जी 🙏
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुराधा जी 🙏
हटाएंबहुत सुंदर कोमल भावों से युक्त रचना
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीया अनिता जी 🙏
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठरी जी 🙏
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