गुरुवार, दिसंबर 24, 2020

प्यार महकता रहता है | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

प्यार महकता रहता है

      -  डॉ. वर्षा सिंह


देखो तो क्या है कोलाहल के भीतर 

बिछी हुई है ख़ामोशी की एक चादर 


बच्चे खेल-खिलौनों में उलझे रहते 

शजर पुराने जानें, गुज़री क्या किन पर 


दो-दो चार जोड़कर चलती दुनिया में 

दो-दो पांच भी होते देखे हैं अक्सर 


तितली-फूल, हवा-पानी के रिश्ते में 

प्यार महकता रहता है ख़ुशबू बनकर 


दौर बदलता, सदी बदलती है लेकिन 

ज्यों के त्यों क़ायम रहते ढाई आखर 


सच कहने का सिर्फ़ उसी में साहस है 

आग जलाए रहता जो अपने भीतर 


सतरों-सतरों गढ़ी किताबें मौसम ने 

पढ़ने वाले ठहरे "वर्षा"- सावन पर


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल!!! यूँ ही लिखते रहें!!!

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    1. आपकी इस अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🙏

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