Dr. Varsha Singh |
इन दिनों
-डॉ. वर्षा सिंह
एक दोस्त में दिखे कुछ बदलाव इन दिनों
करता है दुश्मनों सा बरताव इन दिनों
जीने को ज़िन्दगी है, मरने को मौत है
दोनों के बीच ज़ारी उलझाव इन दिनों
दुबकी पड़ी हैं लहरें, सहमी-सी धार है
लगता नदी में जैसे ठहराव इन दिनों
पढ़ने को चार मिसरे, कहने को शेर हैं
ग़ज़लों से हो रहा है बहलाव इन दिनों
चैनो-अमन की "वर्षा" पल भर न हो सकी
यूं तो घटाओं का है घहराव इन दिनों
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
बेहतरीन ग़ज़ल..उम्दा शेरों से सजी हुई..
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रिय जिज्ञासा सिंह 🌷🙏🌷
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 12 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी 🙏
हटाएंहार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल मुग्धता बिखेरती हुई शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏
हटाएंखूबसूरत ग़ज़ल आदरणीया
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी 🙏
हटाएंबढ़िया गजल।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी 🙏
हटाएंउम्दा शेर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता जी 🙏
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है डॉ. वर्षा!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीय 'हृदयेश' जी !
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