सोमवार, जनवरी 11, 2021

इन दिनों | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


इन दिनों 

           -डॉ. वर्षा सिंह

       

एक दोस्त में दिखे कुछ बदलाव इन दिनों 

करता है दुश्मनों सा बरताव इन दिनों 


जीने को ज़िन्दगी है, मरने को मौत है 

दोनों के बीच ज़ारी उलझाव इन दिनों 


दुबकी  पड़ी हैं लहरें, सहमी-सी धार है 

लगता नदी में जैसे ठहराव इन दिनों 


पढ़ने को चार मिसरे, कहने को शेर हैं 

ग़ज़लों से हो रहा है बहलाव इन दिनों 


चैनो-अमन की "वर्षा" पल भर न हो सकी 

यूं तो घटाओं का है घहराव इन दिनों


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

18 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल..उम्दा शेरों से सजी हुई..

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    1. बहुत शुक्रिया प्रिय जिज्ञासा सिंह 🌷🙏🌷

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 12 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी 🙏

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  4. हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏

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  5. सुन्दर ग़ज़ल मुग्धता बिखेरती हुई शुभकामनाएं।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏

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  6. खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीया

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏

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  8. वाह, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है डॉ. वर्षा!

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 'हृदयेश' जी !

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