Dr. Varsha Singh |
उदासियों से दोस्ती
-डॉ. वर्षा सिंह
जहां पे आज रेत है, वहीं पे थी नदी कभी
जले थे घाट पर दिए, हुई थी रोशनी कभी
पता जहां का था लिखा, ख़यालों की किताब में
वो शाम आज तक वहां मुझे नहीं मिली कभी
कहानियों में है सुना कि आंधियों में टूट कर
गिरे हैं फूल जिस जगह, वहीं थी ज़िन्दगी कभी
हवाएं बदहवास सी, हंसी के चिन्ह ढूंढती
दुखों की छांव है वहां, बसी जहां खुशी कभी
उदासियों से दोस्ती, न चाहते भी हो गई
न राह पहले एक थी, न एक थी गली कभी
यहां न "वर्षा", बिजलियां, झुलस रही है चांदनी
वहां हैं चुप्पियां जहां, बजी थी बांसुरी कभी
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी 🙏
जवाब देंहटाएंउदासियों से दोस्ती, न चाहते भी हो गई । इस ग़ज़ल को पढ़कर तो आँखें नम हो गईं ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया....
हटाएंआदरणीय माथुर जी, आपने मेरी ग़ज़ल पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी दी, इस हेतु मैं आपकी आभारी हूं।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह