सोमवार, जनवरी 04, 2021

उसकी यादें | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

उसकी यादें

    -डॉ. वर्षा सिंह


शाम को किसने पत्ता थोड़ा 

दुख से मेरा नाता जोड़ा 


तेज़ हवा के इक झोंके ने 

बीच सफ़र में लाकर छोड़ा 


उसकी यादें पहने बैठीं 

रेशम का सतरंगी जोड़ा 


काला सूरज, तपता चंदा 

दरिया का रुख़ किसने मोड़ा?


रातों जगती आंखें जलतीं 

नींद न आई, अटका रोड़ा 


बादल सुलगा "वर्षा" दहकी 

बूंद भी बरसी थोड़ा-थोड़ा


       --------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

16 टिप्‍पणियां:

  1. भाव प्रवण सृजन, बेहतरीन ग़ज़ल।
    --
    नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी 🌹🙏

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-12-20) को "रचनाएँ रचवाती हो"'(चर्चा अंक-3937) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी सिन्हा जी,
      यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच हेतु चयनित किया है।
      हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर ग़ज़ल।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  4. उसकी यादें पहने बैठीं
    रेशम का सतरंगी जोड़ा

    काला सूरज, तपता चंदा
    दरिया का रुख़ किसने मोड़ा?

    कोमल विचारों की बड़ी ही सुंदर ग़ज़ल 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनेक दिली धन्यवाद आपको अनुराधा जी 🙏🌹🙏

      हटाएं
  6. हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर तालमेल , शानदार सृजन ।
    अभिनव तुकांत।
    सरस रचना,जाड़े की कुनकुनी धूप जैसी।

    जवाब देंहटाएं