Dr. Varsha Singh |
उसकी यादें
-डॉ. वर्षा सिंह
शाम को किसने पत्ता थोड़ा
दुख से मेरा नाता जोड़ा
तेज़ हवा के इक झोंके ने
बीच सफ़र में लाकर छोड़ा
उसकी यादें पहने बैठीं
रेशम का सतरंगी जोड़ा
काला सूरज, तपता चंदा
दरिया का रुख़ किसने मोड़ा?
रातों जगती आंखें जलतीं
नींद न आई, अटका रोड़ा
बादल सुलगा "वर्षा" दहकी
बूंद भी बरसी थोड़ा-थोड़ा
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
भाव प्रवण सृजन, बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएं--
नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी 🌹🙏
हटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी 🙏
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-12-20) को "रचनाएँ रचवाती हो"'(चर्चा अंक-3937) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
प्रिय कामिनी सिन्हा जी,
हटाएंयह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच हेतु चयनित किया है।
हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
वाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ग़ाफ़िल जी 🙏🌹🙏
हटाएंउसकी यादें पहने बैठीं
जवाब देंहटाएंरेशम का सतरंगी जोड़ा
काला सूरज, तपता चंदा
दरिया का रुख़ किसने मोड़ा?
कोमल विचारों की बड़ी ही सुंदर ग़ज़ल 🌹🙏🌹
बहुत शुक्रिया प्रिय बहन शरद 🌹🙏🌹
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया
जवाब देंहटाएंअनेक दिली धन्यवाद आपको अनुराधा जी 🙏🌹🙏
हटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी 🙏
जवाब देंहटाएंमधुर अहसासों की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर तालमेल , शानदार सृजन ।
जवाब देंहटाएंअभिनव तुकांत।
सरस रचना,जाड़े की कुनकुनी धूप जैसी।