Dr. Varsha Singh |
किस तरह
- डॉ. वर्षा सिंह
याद उसको उसी रास्ते की कथा
जिसमें मिलती रही है व्यथा ही व्यथा
तेज़ रफ़्तार थी ज़िन्दगी की बहुत
काम तो थे कई किंतु अवसर न था
जब से अस्मत लुटी एक मासूम की
देवता पर न उसकी रही आस्था
किस तरह वो तरक्क़ी करेंगे भला
जिनके पैरों में जकड़ी पुरानी प्रथा
बेवज़ह ज़िद पे अड़ने का जिनको शग़ल
बात करना भी उनसे यकीनन वृथा
सीढ़ियां आहटों से लिपटती रहीं
जो रुके ही नहीं उनमें वह एक था
रात को नम हवा पास बैठी रही
मेरे मन का समुंदर उसी ने मथा
जिसकी सूरत हृदय में समायी हुई
पूरी दुनिया से वो है अलग सर्वथा
बात मेरी समझ में न ये आ सकी
प्यार को लोग लेते हैं क्यों अन्यथा !
बन के "वर्षा" झरीं, कुछ सिमट कर थमीं
चंद बूंदों की स्थिति यथा की यथा
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
सीढ़ियां आहटों से लिपटती रहीं
जवाब देंहटाएंजो रुके ही नहीं उनमें वह एक था बहुत ख़ूब!
हार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🙏
हटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
जवाब देंहटाएं"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत-बहुत आभार प्रिय मीना जी 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 25 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय यशोदा जी 🙏
हटाएंलाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद यशवंत माथुर जी 🙏
हटाएंनाजुक अशआरों से सजाई गयी बढ़िया ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
हटाएंआपकी सराहना पा कर मेरा सृजन सार्थक हो गया।
हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
जब से अस्मत लुटी एक मासूम की
जवाब देंहटाएंदेवता पर न उसकी रही आस्था।
कितनी सारी बातें शामिल हैं इस ग़ज़ल में । सटीक बात कहती अच्छी ग़ज़ल
आदरणीया संगीता जी,
हटाएंमुझे प्रसन्नता है कि आपको मेरी यह ग़ज़ल पसंद आई।
आपके प्रति हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
वाह बहुत सुंदर सराहनीय गज़ल
जवाब देंहटाएंप्रिय वर्षा जी।
हर बंध बेहद लाजवाब है।
सादर।
बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता सिन्हा 🙏
हटाएंसीढ़ियां आहटों से लिपटती रहीं
जवाब देंहटाएंजो रुके ही नहीं उनमें वह एक था 👌👌👌👌👌
वाह और सिर्फ वाह वर्षा जी। शानदार ग़ज़ल के लिए आभार और बधाई🙏
बहुत ही सुंदर गजल, वर्षा दी।
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जवाब देंहटाएंसीढ़ियां आहटों से लिपटती रहीं
जो रुके ही नहीं उनमें वह एक था
रात को नम हवा पास बैठी रही
मेरे मन का समुंदर उसी ने मथा
बहुत अनूठे प्रयोग। बहुत बढ़िया।
कोमल भावनाओं से सजी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह !!बहुत खूब,शानदर गजल सादर नमन वर्षा जी
जवाब देंहटाएंग़ज़ल बहुत अच्छी है वर्षा जी । क्या अंतिम पंक्ति में 'स्थिति' शब्द के स्थान पर 'हालत' शब्द का प्रयोग मात्राओं की दृष्टि से अधिक उपयुक्त नहीं रहता ?
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