Dr. Varsha Singh |
हवा ख़ामोश है
- डॉ. वर्षा सिंह
हाल होते जा रहे बदतर, हवा ख़ामोश है
फूल के बदले मिले पत्थर, हवा ख़ामोश हैं
नष्ट होती जा रही है उर्वरकता ख़्वाब की
भावनाएं हो रहीं बंजर, हवा ख़ामोश है
एक लड़की जो थी बातूनी, न चुप रहती कभी
ओढ़ ली क्यों मौन की चादर, हवा ख़ामोश है
मात- शह के खेल में सांसे उलझती जा रहीं
बन गई है ज़िन्दगी चौसर, हवा ख़ामोश है
इस क़दर होने लगी है खुल के अब धोखाधड़ी
हो गया विश्वास भी जर्जर, हवा ख़ामोश है
प्यार की चाहत में अक्षर द्वेष के ढाई मिले
चैन मन का हो गया बेघर, हवा ख़ामोश है
दोस्ती "वर्षा" यही है गर, तो क्या है दुश्मनी !
वार करती बिजलियां छुप कर, हवा खामोश है
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
बेहतरीन और सदाबहार गीतिका।
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश में भी बिल्कुल फिट है आपकी ग़ज़ल।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 🙏
हटाएंमेरी ग़ज़ल आपको रुचिकर लगी यह मेरी ख़ुशनसीबी है।
बहुत ख़ूब, बहुत ख़ूब वर्षा जी ! आईने सरीख़ी है यह ग़ज़ल । इंसान चाहे तो इंसान, ज़िंदंगी चाहे तो ज़िंदगी और दुनिया चाहे तो दुनिया इसमें अपना अक्स देख ले ।
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल को इतना मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय माथुर जी 🙏
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
प्रिय कामिनी सिन्हा जी, मेरी ग़ज़ल का चयन 'चर्चा मंच' ब्लॉग हेतु चयनित करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
हटाएंमेरी ग़ज़ल का चयन 'पांच लिंकों का आनंद' ब्लॉग हेतु चयनित करने के लिए हार्दिक आभार कुलदीप ठाकुर जी 🙏
जवाब देंहटाएंवाह!वर्षा जी ,बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंप्यार की चाहत में अक्षर द्वेष के ढाई मिले
चैन मन का है गया बेघर ,हवा खामोश है ।
क्या बात है !
बहुत - बहुत धन्यवाद प्रिय शुभा जी 🙏
हटाएंहवा खामोश है मगर उसकी ख़ामोशी में एक तूफान छुपा है जो आप जैसे सजग रचनाकारों की कलम से प्रकट होता ही रहता है
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनिता जी,
हटाएंआपकी उत्साहवर्धक इस टिप्पणी के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार 🙏
मेरे ब्लॉग पर सदैव आपका स्वागत है।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
वाह!वर्षा जी खूब कही! आपने।
जवाब देंहटाएंसभी प्रेम के ढ़ाई अक्षर की राग हैं अलापते
द्वेष के अढ़ाई की बात पर हवा खामोंश है ।।
लाजवाब ग़ज़ल बोल उठा हर शख्स पढ़ कर।
अब चाहे कितनी भी उधर हवा खामोश है।।
अप्रतिम।
आदरणीया कुसुम कोठरी जी,
हटाएंयह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपको मेरी ग़ज़ल रुचिकर लगी।
हार्दिक धन्यवाद,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी 🙏
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